कुछ था .... कुछ नहीं

कुछ था .... कुछ नहीं

आँचल में सितारे जडे  बहुत थे, पर ख़्वाहिश कुछ और की थी
कुछ खुशियां थी हमारे पास पर चाहत कुछ और की थी

दामन में हमारे चाँद था , पर ख्वाहिश आफ़ताब की थी
अपना है उसकी ख़ुशी नहीं, उसका ग़म है  जो हमारी नहीं थी

इसी चाहत में कुछ वक़्त गुजरा और फिर कुछ अरसा
जब लगाया हिसाब ज़िन्दगी का फिर भान आया सहसा

इतना समय बस उसे पाने में निकला जो पास नहीं था
संघर्ष में बीतता  समय, और जो पास था उसे भी सीने से न लगा पाया

बितते समय के साथ आँखों की रोशनी कुछ कम हो गयी
अब दामन में अपने चाँद की चमक भी फीकी हो गयी

ज़माने में जिसके पीछे भागे हम वो दूर निकल गए
पास वाले अब नज़र नहीं पड़ते वो भी आँखों से ओझल हो गए
                                                                    - सौरभ  सिंह "सौरभ"